आज चाय लवर्स का दिन है, चाय की दीवानगी का आलम ये है कि लोग गांव से निकलकर खेत की मेडियों से होते हुए उन चौराहो तक आ जाते हैं जहाँ मिट्टी के कुल्हड़ में कुछ हसीन ख्वाब उनका इंतजार करते हैं। भोर में जागते हुए हर शहर की गलियों के नुक्कड़ पर उबाल आता हैं जिसके ज़ायके के हर घूंट में इंसान के अंदर चल रहे द्वन्द और उसकी उड़ान को मज़बूती प्रदान करता हैं। थकान से बोझिल हुए दिन हों या प्रतीक्षा में बीतता हुआ पल जीत की खुमारी हो या तैयारी के वो पल-
हर अंदाज़ में इसका घूंट लगता......बहुत निराला हैं
हम लिखने पढ़ने वालों के लिए चाय एक निवाला हैं।
मैं खौलता हुआ हूँ ......दूध,
तुम नाज़ुक सी हो.... पत्ती।
मैं तीक्ष्ण गंध अदरक का हूं
महक हो तुम..इलाइची की।
मैं मिठास की .....आशा हूँ
तुम चीनी की हो .....डली।
मैं चूल्हे पे .......गर्माता पैन,
तुम प्यारी सी हो ......छन्नी।
मैं हूँ स्टील का इक.. ..पकड़
तुम हो शर्माती सी ...प्याली।
मैं गन्ने का हूं बना ..हुआ गुण
तुम श्यामा तुलसी आंगन की
मैं काली मिर्च का हूं ...पाउडर
तुम सोधी गंध पकते ..गुण सी
मैं ठहरा चाय का वही... स्वाद
तुम चाय की हो अनोखी तृप्ति
मैं बिन दूध हूं चाय का. प्याला
तुम प्रतीक्षा हो हर इक मन की
मैं सर्द हवाओं का हूं.... झोका
तुम उष्मित आंच की नेह लड़ी
मैं घूंट घूंट हूं इस आचमन का
तुम हर गागर की हो ....खुशी
तुमसे ही महकते सांझ सुबह
तुमसे महके हर इक..गोधूली
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साहित्य