श्रीराम लीला महोत्सव में बच्चों ने सीता स्वयंवर व धनुष भंग करने के दृश्य का किया संजीव मंचन -In Shri Ram Leela Mahotsav, children did a lively staging of Sita Swayamvar and the scene of breaking the bow.

बस्ती। सनातन धर्म संस्था ओर से बस्ती क्लब मैरेज हाल में चल रहे श्रीराम लीला महोत्सव के तीसरे दिन जनक प्रतिज्ञा, धनुष यज्ञ, सीता स्वयंवर, परशुराम लक्ष्मण संवाद, राम जानकी विवाह और विदाई का मंचन हुआ। सी डी ए एकेडमी मथौली, बनकटी के बच्चों ने सीता स्वयंवर व धनुष भंग करने के दृश्य को प्रस्तुत कर दर्शकों से खूब तालियां बटोरी। दूसरे भाग में जी वी एम कान्वेंट, जयपुरवा, बस्ती के बच्चों ने परशुराम लक्ष्मण संवाद, श्री सीताराम विवाह, कलेवा और विदाई तक की लीला सजीव मंचन किया।
     श्रीराम दरबार की आरती, श्री रामस्तुति से आरम्भ हुई श्रीराम लीला में नगरपालिका अध्यक्ष नेहा वर्मा, पवन कसौधन, अंकुर वर्मा, डॉ अरुणा पाल, अनिल तिवारी, अवधेश पाण्डेय, गोपेश पाल, नितेश शर्मा, रामविनय पाण्डेय, नीतू सिंह, रमेश सिंह, शैलेश सिंह, अभिषेक मणि त्रिपाठी, पंकज त्रिपाठी ने श्रीराम लीला और विविध प्रसंगों पर अपने विचार रखे। संचालन पंकज त्रिपाठी ने किया. लीला का मंचन जनक प्रतिज्ञा के दृश्य से शुरू होता है। इसी में धनुष यज्ञ का चित्रण किया गया। व्यास राजा बाबू पाण्डेय ने बताया कि शिव का धनुष जहाज है और राम का बल समुद्र है। धनुष टूटने से सारा समाज डूब गया। जो मोहवश इस जहाज पर चढ़े थे। दर्शक गण रंग बिरंगे फूल बरसा रहे थे। व्यास जी गीत गा रहे थे। सभी हर्षित नजर आ रहे थे। इस प्रसंग में सीता जी, महल में रखे शिवजी के धनुष को एक पुष्प की भांति एक स्थान से दूसरे सथान पर रख देती हैं, जिसको देखकर राजा जनक यह प्रतिज्ञा लेते हैं कि जो कोई भी इस धनुष को तोड़ेगा, सीता का विवाह वह उससे करेंगे। जनक जी प्रतिज्ञा के अनुसार महल में धनुष यज्ञ का आयोजन करते हैं जहां पर तमाम सुदूरवर्ती क्षेत्रों से आए राजा-महाराजा भाग लेते हैं और सभी धनुष को उठाने का प्रयास करते हैं लेकिन कोई भी धनुष को तोड़ने के बजाए उठाने में ही अक्षम साबित होते हैं। जनक जी ने जब अपना दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि यह पृथ्वी वीरों से खाली है उसी समय लक्ष्मण जी ने क्रोधित होकर जनक जी को समझाया की श्री राम चन्द्र जी के होते ऐसे अनुचित वचन आपको नही कहना चाहिए। जनक और लक्ष्मण संवाद पर खूब तालियां बजीं, लोगों ने लक्ष्मण के अभिनय को खूब सराहा। लीला में गुरू विश्वामित्र श्री राम को आदेश देते हैं कि वह उस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ायें। गुरू की आज्ञा पाकर श्री राम, शिव जी के धनुष को हाथ से उठाकर जैसे ही प्रत्यंचा चढाते हैं वैसे ही सारे लोग हतप्रभ हो जाते हैं प्रत्यंचा चढ़ाते ही राम से धनुष टूट जाता है। पूरा रामलीला पांडाल भगवान के जयघोष से गूँजने लगता है।
        दूसरे भाग में जी वी एम स्कूल के बच्चों द्वारा आगे की लीला का मंचन किया गया। आगे की लीला में जैसे ही धनुष टूटने की आवाज आकाश में गूंजती है वैसे ही महल में परशुराम जी गरजते हुए महल में पहुंचते हैं और क्रोध में कहते हैं कि भगवान शिव के इस धनुष को किसने तोड़ा है, कौन है यह दुःसाहसी। परशुराम के इस वचन को सुनकर लक्ष्मण जी बड़े आवेग में आकर उत्तर देते हैं।  परशुराम जी और लक्ष्मण जी में बड़ा सुंदर संवाद स्थापित होता। इस संवाद को सुनकर तालियां बजती रहीं और लोगों ने पुरस्कार दिये। परशुराम लक्ष्मण संवाद के बाद दूत अयोध्या जाता और वहाँ महाराज दशरथ बारात सजाकर जनकपुर आते हैं। बारात में ढोल नगाड़े पर नाचते गाते दर्शक भी सम्मिलित हुये। लौकिक रीत से श्री राम जी श्री जानकी जी का विवाह व विदाई हुई। विवाह के अवसर पर दर्शकों ने माता सीता और प्रभु श्री राम के पांवपूजे और दान दिये इस सुंदर अवसर पर आकाश से सभी देवतागण पुष्प वर्षा करते हैं। विवाह के अवसर पर सनातन धर्म सँस्था की ओर से बारातियों व दर्शकों के लिए सुंदर जलपान की व्यवस्था की गई।
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