सुरम्य सांस्कृतिक महोत्सव में लोक कलाओं के दिखे विविध रंग -Various colors of folk arts seen in picturesque cultural festival

बस्तीः लोक कलाओं ने अपना शास्त्र भले ही ना गढ़ा हो लेकिन अपने अनगढ़पन में भी लोक कलाओं ने भारतीय संस्कृति को अपने आप में समेटा है और समाज को प्रतिबिंबित किया है.  
      यह बातें लोक कला फाउंडेशन बस्ती द्वारा बन्तला गाँव में आयोजित सुरम्य सांस्कृतिक महोत्सव में मुख्य अतिथि डॉ. हरिकेश उपाध्याय नें कही. उन्होंने कहा कि आपा-धापी भरे शहरी जीवन में इन लोक कलाओं के मायने बदल दिए हैं. लेकिन तकनीक के विकास के साथ भी संचार के माध्यम के तौर पर इन लोक कलाओं के वजूद को लेकर मंथन का दौर जारी है.
     संस्था की सचिव बबिता गौतम नें कहा क्या लोक कलाएं हमारी जिंदगी का हिस्सा उस तरह रह गई हैं जैसे पहले हुआ करती थीं? क्या पूंजी के तंत्र ने लोक कलाओं के शास्त्र को भी अपनी तरह से प्रभावित किया है?
         उन्होंने कहा कि हमारी जिंदगी का हिस्सा रहीं इन लोककलाओं पर कभी तो बात हो, कभी तो हम समझें कि इनकी अहमियत क्या है? कभी तो हम लोक-कलाओं के रस से सराबोर हों, समझें कि दुनिया इससे इतर भी है, जिसे हमने भौतिकवाद के दायरे में बांध दिया है.
    इस मौके पर कलाकारों द्वारा कजरी, सोहर, चैता आदि पारंपरिक विधाओं पर गीत संगीत सहित नृत्यमय प्रस्तुति दी गई. मंच पर अपने कलाओं की प्रस्तुति देने वाले कलाकारों में चारु, अन्तिमा, रागिनी, सोहन, महिमा, मुकेश, राधेश्याम शामिल रहे.

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