हरितालिका व्रत से धन, धान्य, सुख, समृद्धि और चिरंजीवी पति एवं पुत्र मिलते हैं- ज्योतिष गुरू पंडित अतुल शास्त्री
हिन्दू धर्म में तीज-पर्व त्योहारों की कोई कमी नहीं है। सभी त्योहारों का अपना महत्व होता है। तीज पर्व इन्हीं में से एक है। तीज साल में तीन बार मनाया जाता है। पहला हरियाली तीज, दूसरा कजरी तीज और तीसरा हरतालिका तीज। इन तीनों में से हरतालिका तीज को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। हरतालिका तीज का पर्व हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस साल हरतालिका तीज का व्रत 6 सितंबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा। यह बहुत कठिन और निर्जल व्रत है।
हरतालिका तीज व्रत कथा
तीज के संबंध में कथा है कि पर्वतराज हिमालय की पुत्री गिरिजा अर्थात पार्वती ने सबसे पहले तीज व्रत किया था। कहा जाता है कि पर्वतराज हिमालय की पुत्री जब विवाह के योग्य हुईं तो पर्वतराज चिंतित हो गए तथा योग्य वर की तलाश में जुट गए। ऐसे में ही एक समय नारद मुनि भगवान विष्णु के विवाह प्रस्ताव लेकर पर्वतराज हिमालय के पास पहुंचे तो हिमालय तुरंत तैयार हो गए। लेकिन उनकी पुत्री गिरिजा उर्फ पार्वती शिव से विवाह करना चाहते थे। जिसमें पिता के राजी नहीं होने पर गिरिजा वन चली गईं तथा अपने आत्मीय वर शिव की बालू एवं मिट्टी से प्रतिमा बनाकर पूजन करते हुए निर्जला रहकर नदी तट पर पूरी रात जगी रहीं। गिरिजा द्वारा की जा रही पूजा से शिव का आसन हिल गया और वे आये और देवी से पूछा कि आप क्या चाहती हैं। शिव के बहुत पूछने पर गिरिजा ने कहा कि यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मैं आपकी पत्नी बनने का वरदान चाहती हूँ। भगवान यह आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए।इधर, पर्वतराज हिमालय अपनी पुत्री को खोजते हुए नदी किनारे पहुंचे तो पुत्री को शिव की उपासना करते पुत्री को देखकर पूरी जानकारी ली तथा पुत्री की इच्छा को ही सर्वमान्य बताया। कहा जाता है कि जिस दिन पार्वती ने घर छोड़कर नदी किनारे बालू एवं मिट्टी से शिव की प्रतिमा बनाकर निराहार रह पूजन किया, वह भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि में हस्त नक्षत्र था। यह मुहूर्त अखंड सौभाग्य को देने वाला योग है, जो सौभाग्यवती स्त्री यह व्रत करती है वह आजीवन अखंड सौभाग्यवती रहती है। उसी दिन से तीज व्रत और पूजन की परंपरा चली आ रही है। इस व्रत से धन, धान्य, सुख, समृद्धि और चिरंजीवी पति एवं पुत्र मिलते हैं।ज्योतिष गुरू पंडित अतुल शास्त्री
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