बस्ती। इस समय खरीफ की मुख्य फसल धान बढ़वार की अवस्था
में है। विगत कुछ दिनों से मौसम में हो रहे बदलाव-बारिश तथा तापमान 28
डिग्री से.-34 डिग्री से. तक एवं वातावरण में नमी (सापेक्षिक आर्द्रता) के
कारण धान में रोग लग सकते है। उक्त जानकारी देते हुए जिला कृषि रक्षा
अधिकारी रतन शंकर ओझा ने बताया कि झुलसा रोग (बैक्टीरियल
ब्लाईट/स्ट्रीक)-यह नहरी/सिंचित खेतों में अधिक लगता है जिसमें पत्तिया नोक
की तरफ से अन्दर की तरफ पीली पड़ लहरदार होकर सूखने लगती है तथा बाद में
पुआल जैसे दिखने लगती है। बैक्टीरियल स्ट्रीक में सुबह के समय पत्तियॉ खून
की तरह लाल दिखायी देती हैं। इसके नियन्त्रण हेतु 15 ग्राम
स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या वैलिडामाइसिन एन्टीबायोटिक तथा 500 ग्राम कापर
आक्सीक्लोराईड 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव
करें।
उन्होने बताया कि शीथ ब्लाइट व शीथ राट रोगः-जिन क्षेत्रों
में जल जमाव है एवं साथ ही खेत में यूरिया (नाइट्रोजन) अधिक प्रयुक्त है
वहाँ धान की फसल इस रोग से प्रभावित हो सकती है। शीथ ब्लाइट रोग में
पत्तियों पर अनियमित आकार के धब्बे बनते है जिनका किनारा गहरा भूरा तथा बीच
का भाग हल्के रंग का होता है बाद में धब्बे एकाकार हो जाते हैं, पत्तियों
सूख जाती है। शीथ राट में उक्त के अलावा पूरा शीथ प्रभावित होकर सड़ने लगता
है। इसके नियन्त्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 50 प्रति० डब्लू०पी० की 500
ग्राम/हेक्टेयर या प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिषत ईसी की 500 मिली० प्रति हे० या
एजाक्सीस्ट्रोबिन 11 प्रति0$टेबूकोनाजोल 18.3 प्रति० एस०सी० में से किसी
एक का प्रयोग करें व 10 से 15 दिन बाद पुनः रसायन बदल कर छिड़काव करें।
उन्होने बताया कि झॉका रोग- धान का यह अत्यन्त विनाशकारी रोग है जिससे
पत्तियों व उनके निचले भागों पर आंख के आकार के छोटे धब्बे बनते है जो बाद
में बढ़कर नाव की तरह हो जातें है। सर्वप्रथम पत्तियों पर तत्पश्चात
पर्णच्छद, गांठो आदि पर दिखतें है। यह फंफूदजनित रोग पौधों की पत्तियों,
गाठों एवं बालियों के आधार को भी प्रभावित करता है। इसमें धब्बों के बीच का
भाग राख के रंग का तथा किनारें कत्थई रंग के घेरे की तरह होते है जो बढ़कर
कई से०मी० बड़े हो जाते है। समय पर नियन्त्रण न होने पर शत-प्रतिशत फसल की
हानि होती है। इसके नियन्त्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 50 प्रति० डब्लू०पी० 500
ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 2-3 छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर
करें।
उन्होने बताया कि धान में उक्त रोग अधिक नमी/जल-जमाव तथा
मृदा में नाइट्रोजन की अधिकता से होते है। अतः जल-जमाव न होने दे. यूरिया
का संतुलित मात्रा में ही प्रयोग करें। मेड़ों की सफाई करें जिससे आगे चलकर
गन्धी आदि कीटों का नियन्त्रण किया जा सके।
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