भक्ति की सुगंध बढ़ाती है मलयागिरि की सोंधी महक

अयोध्या। अयोध्या में काफी कुछ बदलाव हुआ हैं किन्तु कुछ चीजों पर बदलाव का कोई असर नहीं होता अपने सघर्षाे से बनाये मुकाम हर दौर में मुक़म्मल होते हैं एक ऐसी शख्सियत की कहानी से आज़ आपको रूबरू कराता हूँ।
पुरानी अयोध्या के नए घाट से बढ़ते लखनौरी इटों की पुरानी इमारतें सभ्यता के खंडहरो में संस्कृति क़ो सहेजे हुई शताब्दियों से खड़ी थी इन्ही दुकानों में लाई माला चंदन श्रृंगार के सामान बिकते हुए दिखते हैं किंतु जो सबसे खास बात है कि सभी जगहों पर चंदन की डिब्बी लगभग एक जैसी दिखती है हाथ मे उठाते ही मलयगिरि की सोंधी महक से मन मे भक्ति की सुगंध बढ़ने लगती है। इतने सम्मोहित उत्पाद के बारे में ये जानकर कि पास में ही इसके खोजकर्ता सृजनकर्ता से मुलाकात हो जाएगी फिर क्या था ये पांव उसी दिशा की ओर चल पड़े।
आइए आपको उस चंदन के सफर की ओर ले चलते हैं।
कनक भवन सरकार का भव्य प्रांगण जो अपने साथ बेहद दिलचस्प इतिहास को समेटे है कहते हैं ये महारानी कैकेयी ने जानकी जी क़ो मुँह दिखाई में दिया था कालांतर में टीकमगढ़ के राजपरिवार ने इसका भव्य निर्माण कराया  इसके गेट से प्रवेश करते ही माँ शबरी के दर्शन होते हैं वही से बाएं तरफ मिठाई और पूजा सामग्री की दुकानें सजी रहती हैं सबसे पहले खुरचन पेड़ा की दुकान और उससे लगे द्वारका नाथ की दुकान है। उनकी दुकान में बड़े और छोटे जार में रखे हुए चंदन जिसे लोग रुमहाराजचंदन के नाम से जानते हैं। सत्तर के दशक में जब पूजा के लिये चंदन घिस कर लगाया जाता था उसी समय इनके दिमाग मे ये बात सूझी क्यो न चंदन को पाउडर फार्म से इस तरह बनाया जाय कि पूजा और आस्था के बीच ये उत्पाद जैसा न लगे इनकी कोशिश और लोकप्रियता का आलम ये है कि उनके चाहने वाले सिंगारपुर,अमेरिका, इंग्लैंड से लेकर खाड़ी देशों में भी इनके महाराजा चंदन जाते रहते हैं।
ये असल दुकान है वैसे ही महाराजा चंदन कई नामों से बिक रहा है इस पर द्वारकानाथ जी कहते हैं कि सभी महाराजा चंदन के साथ ही लिखेंगे हमारे लिये यही संतोष है।
कार्य के प्रति लगन और निष्ठा ने द्वारका जी को एक बेहतर मुकाम दिया है और महाराजा चंदन के रूप में मुक्कमल पहचान।
तो जब कभी अयोध्या आइये तो सफलता के इस हुनरमंद से मिलएगा ज़रूर जो तमाम चुनौतियों के बीच मुस्कराते रहते हैं ठीक वैसे ही जैसे चंदन अपनी शीतलता विषधरों के बीच बनाये रखता है।
✹मयंक श्रीवास्तव

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