उप्र के बस्ती जनपद के कवि/साहित्यकार डॉ0 राजेन्द्र सिंह ‘राही’ की लघुकथा -अँगूठी

लघुकथा
-अँगूठी-

-डॉ0 राजेन्द्र सिंह ‘राही’
बस्ती उ0प्र0

रोहित इधर कई दिनों से बहुत चिंतित रहने लगा था। उसकी इस चिंता का कारण सुमन अच्छी तरह से जानती थी। इसलिए रोहित को चिंतित देखकर वह उन्हें अक्सर समझाया करती थी कि वे ज्यादा चिंता न करे। ईश्वर की कृपा से इस समस्या का कोई न कोई हल जरूर निकल जायेगा। लेकिन रोहित, उसे तो यह चिंता सताये जा रही थी कि वह अँगूठी के लिए रुपयों की व्यवस्था कहाँ से करे?। रोहित एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक था। उसे जो वेतन मिलता था उससे उसके परिवार का गुजर-बसर होना भी मुश्किल था, इसीलिए वह अपना परिवार चलाने के लिए कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था। बड़े कठिनाई से वह अपने बीबी-बच्चों की जरूरतें पूरी कर पा रहा था। ऐसी स्थिति में बुआ के लड़के मनोज की शादी में जाना और उनकी बहू के लिए अँगूठी की व्यवस्था रोहित की चिंता का मुख्य कारण था। उसे अच्छी तरह से याद था कि उसकी शादी में बुआ ने सुमन को मुँह दिखाई दे रूप में अँगूठी पहनाया था। अब, यदि सुमन उनकी बहू को अँगूठी नही पहनाती है, तो बुआ क्या सोंचेगी ? उनके मन में सुमन के प्रति सम्मान का भाव नहीं रहेगा और अवसर पाने पर ताने मारने में भी वह नहीं चूकेंगी। बस, यही सोंचकर वह अन्दर ही अन्दर घुला जा रहा था। उसने स्कूल से भी मदद लेने की कोशिश की लेकिन विद्यालय प्रशासन ने बहाना बनाकर इंकार कर दिया। रोहित को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था कि वह क्या करे? शादी में सप्ताह भर का समय ही शेष था। यह चिंता उसे परेशान किए जा रही थी। रोहित मन ही मन सोचने लगा था कि वह सुमन को शादी में ही न ले जाय, बहुत होगा बुआ नाराज ही होंगी। बाद में उन्हें अपनी समस्या बता दूँगा। नहीं.. नहीं, यह ठीक नहीं रहेगा। उन्हें ज्ञात हो जायेगा कि मैं बहाना बना रहा हूँ। और फिर.. इसी तरह वह प्रश्नों के सागर में डूबता-उतराता एक कुर्सी पर बैठे-बैठे न जाने कहाँ खोया हुआ था कि सुमन की आवाज सुनकर चौंक गया।
‘‘आप फिर चिंतित हो गये ?’’ रोहित को सुमन की मुस्कराहट से कुछ राहत तो मिली। किन्तु इसके पीछे का रहस्य समझ से परे था।
‘‘सुमन! शादी में कुछ दिन ही बचे हैं और अभी तक अँगूठी के लिए रुपये की व्यवस्था नहीं हुई है। तुम तो जानती हो कि बुआ...’’ रोहित कुछ आगे बोल पाता कि सुमन ने उसकी बात काटते हुए कहा, ''आप चिंता न करें। बुआ को नाराज होने का अवसर नहीं मिलेगा’’। रोहित कुछ बोलता कि सुमन ने एक चमकती डिबिया उसके हाथ में रख दिया और कहा, ‘‘अब यह मत पूछियेगा कि यह कहाँ से आया। मैं जानती हूँ कि आप मेरे मान-सम्मान को लेकर बहुत चिंतित हैं। आपके सम्मान की रक्षा करना भी तो हमारा धर्म है।’’
रोहित के नेत्र भर आये। उसे आभास हो गया कि डिबिया में अँगूठी है। उसने सुमन की तरफ देखा और फिर धीरे से डिबिया खोली। अँगूठी की चमक उसकी चिंता कम करने के बजाय उसे और बढ़ाने लगी। रोहित के मस्तिष्क में अनेक प्रश्न उसे कचोटने लगे। उसने धीरे से पूछा, ‘‘सुमन.. इस अंगूठी का पैसा आया कहाँ से? प्लीज मुझे सच-सच बताओ।’’
सुमन ने रोहित को सब सच-सच बता दिया। सच्चाई जानकर रोहित की आँखें छलक पड़ी। उसे अपनी पत्नी पर गर्व हो रहा था। आज उसके हृदय में सुमन के प्रति सम्मान बहुत बढ़ गया था। लेकिन रोहित इस बात से दुखी भी था कि सुमन ने अपने पास बची दोनों अँगूठी बेच दी थी।

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