मयंक
बस्ती, उ0प्र0
आ रही है ......शाम देखोबस्ती, उ0प्र0
दिवस के....... ढलान पर
पकती चाय का ..ज़ायका
है हर किसी के.जुबान पर
इस स्वाद के सभी. दीवाने
दूध पत्तियों का है गठजोड़
महकती अदरक इलाइची
इसमें सबका है सहयोग
पैन में उबल उबल...कर ये
स्वाद की गढ़े... कहानियां
थिर के जब छानी जाती हैं
मुस्कुराती है फिर प्यालियां
यूं तूं हर महीने पूरे .बरस में
रंग घोलती रहती हैं ये सदा
जब धूप लगे खुद को अच्छा
चाय की दीवानी हैं .सर्दियां
गरम मुंगफली या हो .समोसे
अगर हों चाय के साथ में
ये वक्त वहीं ठहर ....जाता है
मयंक, खूबसूरत जज्बात में
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साहित्य