महान सम्राट अशोक की जयंती पर शत शत नमन- सोनिया

20 अप्रैल 2021 को देवानाम् प्रियदर्शी सम्राट अशोक महान की 2325 वाॅ जन्मोत्सव (304 ई.पू.चैत्य बैशाख शुक्ल पक्ष अष्टमी) 

(जितेन्द्र पाठक) संतकबीरनगर। राजकीय कन्या इंटर कॉलेज खलीलाबाद संतकबीरनगर की व्यायाम शिक्षिका सोनिया ने अशोक सम्राट  के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि- कलिंग के भीषण युद्ध का सम्राट अशोक के जीवन पर गहरा प्रभाव पडा था। महासंहार  के कारण  वह पश्चाताप करने लगा।  बैचेन हो गया। बहुत दिनों तक  पाटलिपुत्र  के राजमहल में भी उनके कानों में युद्ध  की चीत्कारें और  तलवारों की खनखनाहट गूंजती रहती थी। वह राजमहल  की अटारी पर सुन्यमनस्क बेठा रहने लगा।
एक दिवस न्यग्रोध नामक एक सामणेर  शान्तभाव से अशोक के महल के निकट से गुजर रहा था। उन्हे देखते ही अशोक के मन में उनके प्रति आस्था जागृत हुई  और  अशोक ने सामणेर न्यग्रोध को अपने पास बुलाया।  उचित आसन पर बिठाकर  स्वागत  सत्कार  किया  और  आदरपूर्वक  भोजन कराया।  भोजन ग्रहण  करने के  पश्चात  न्यग्रोध  सामणेर ने धम्म देशना  की। न्यग्रोध  सामणेर के अमृत वचन वर्षा  के समान शीतलता प्रदान करने वाले थे।
धम्म देशना के कुछ अंश-
"अप्पमादो अमतपदं  पमादो मच्चुनो पदं।
अप्पमत्ता न मीयन्ति ये पमत्ता यथा मता।"

- प्रमाद न करना अमृत पद है, प्रमाद करना मृत्यु पद है। अप्रमादी नही मरते, किन्तु प्रमादि तो मरे ही है।
 "एतं विसेसतो ञ्त्वा अप्पमादम्हि पण्डिता।
अप्पमादे पमोदन्ति अरियानं गोचरे रता।"

- पण्डित लोग अप्रमाद के विषय में अच्छी तरह जान,बुद्धों के उपदिष्ट आचरण में रत हो, अप्रमाद में प्रमुदित होते है।
 "ते झायिनो साततिका  निच्चं दल्ह-परक्कमा।
फुसन्ति धीरा  निब्बाणं योगक्खेम  अनुत्तरं ।।"

- सतत ध्यान  का अभ्यास  करने वाले  नित्य, दृढ पराक्रमी वीर पुरूष परमपद  योग-क्षेम निर्वाण  का लाभ  करते है।
"जट्ठानवतो सतिमतो सुचिकम्मस्स निसम्मकारिनो।
सञ्ञतस्स च धम्म जीविनो अप्पमत्तस्स  यसोभिवड्ढति। ।"

- जो  उद्योगी सचेत, शुचि कर्मवाला तथा सोचकर काम करनेवाला है, और  संयत, धर्मानुसार  जीविका वाला एवं  अप्रमादी है,उसका यश बढता है।
" मा  पमादमनुयुञ्ञेन्ति , मा कामरतिसन्थवं।
अप्पमत्तो हि  झायन्तो  पप्पोति विपुलं सुखं। ।"

- प्रमाद  में  मत फंसो, कामों में रत  मत  होओ, कामरति  में मत लिप्त  हो।  प्रमाद  रहित  पुरूष  ध्यान  करते  महान  सुख  को प्राप्त  होता है।
प्रमाद  और  अप्रमाद  के विषय में देशना सुनकर शोकग्रस्त अशोक के मन को कुछ शान्ति मिली। अशोक बुद्ध धम्म के प्रति आकर्षित हुआ।  तत्काल  सामणेर न्यग्रोध को भिक्षुसंघ सहित  भोजन के लिए  आमंत्रित किया।  दूसरे दिन  दोपहर के भोजन के समय  न्यग्रोध  सामणेर  32 भिक्षुओ  तथा अपने आचार्य  स्थविर उपगुप्त राजमहल में पहुंचे।  सम्राट अशोक ने सभी को अपने हाथों से भोजन परोसा।  राजपरिवार  के सभी लोग वहां उपस्थित थे।  भोजन के उपरान्त  धम्म देशना हुई। धम्म देशना से प्रमुदित होकर सम्राट अशोक ने सपरिवार  बुद्ध धम्म की दीक्षा ली। यह घटना अश्विन शुक्ल दशमी के दिन घटी थी। इसीलिए यह दिवस अशोक विजयादशमी के रूप में प्रति वर्ष  श्रद्धा और  धूमधाम के साथ बुद्ध अनुयाई मनाते है।
बुद्ध शरण ग्रहण के बाद  सम्राट अशोक  ने तलवार का त्याग किया और  शान्ति और करूणा का मार्ग प्रशस्त किया। कालाशोक अब धम्माशोक हो गया। बाद में प्रियदर्शी सम्राट अशोक मोग्गलिपुत्त तिस्स के संपर्क में आए और  पूरी तरह  बौद्ध उपासक हो गए। इतिहास के पन्नो पर अशोक महान को प्रियदर्शी (देवताओं का प्रिय) अशोक मौर्य 'देवानांप्रिय' एवं 'प्रियदर्शी' के नाम से वर्णित है। इसीलिए नही के वे विशाल साम्राज्य के सम्राट थे या युद्ध में अपराजित रहे थे। इसलिए  वे महान है कि उन्हों ने प्रजा के कल्याण के लिए  जीवन समर्पित किया और बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय अनेक कल्याणक काम किए। अपने गुरू मोग्गलिपुत्त तिस्स की प्रेरणा से अशोक ने बौद्ध तीर्थ स्थलो की धम्म यात्रा की- वे लुम्बिनी, कपिलवस्तु, बोधगया, सारनाथ,  कुशीनगर, वैशाली और अन्य स्थलो पर स्वयं गए और वहां ऐतिहासिक प्रमाण स्थापित किए।  आज भी ऐतिहासिक प्रमाण  सम्राट अशोक की धम्म यात्रा की गवाही देते है। अपनी प्रजा के कल्याण के लिए अशोक ने धम्म प्रचार करने के लिए अधिकारी नियुक्त किए। इन्हे धर्ममहामात्र कहते थे।
धम्म प्रचार को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य  से सम्राट अशोक ने मनुष्यों तथा  पशु-पक्षियों के कल्याणार्थ अनेक कार्य किए।  सर्वप्रथम  उसने पशु-पक्षियों की हत्या पर रोक लगाई। अपने पूरे राज्य में  मनुष्यों और  पशुओं के लिए  चिकित्सालय खुलवाए। जहां नि:शुल्क उपचार  प्रदान किया जाता था। उसने राजमार्ग पर फलदार व शीतल छांव वाले वृक्ष  लगवाए, ताकि  थके हुए  मनुष्य पशुओं को छाया मिले।  सडकों के किनारे कुएं खुलवाए  और  विश्रामगृह  स्थापित  करवाए।
सम्राट अशोक ने धम्म प्रचार  के लिए  उपासकों के लिए  बुद्ध धम्म  के कल्याणकारी  सिद्धांतो को  चट्टानों तथा  स्तंभो पर खुदवा कर अपने साम्राज्य  के कोने-कोने में  स्थापित  करवाया।  पत्थरों  पर धम्म  अभिलेख  खुदवाने के पीछे उसका  प्रयोजन था कि  ये धम्म अभिलेख चिरस्थाई रहें तथा उसके पुत्र-पौत्रादि प्रजा के भौतिक  एवं नैतिक लाभ के लिए कार्य  करते रहे। ये धम्म अभिलेख  उस समय की  जनता की आम भाषा पालि में होने के कारण बहुत  लोकप्रिय  बन गए थे। आज भी  ये धम्म अभिलेखों, शिलाऔ और स्तंभो पर  उत्तर में शाहबाजगढी ( पेशावर, पाकिस्तान),दक्षिण में मास्की ( रायपुर,कर्नाटक),पूर्व में धौली ( पुरी-उडीसा) तथा  पश्चिम में गिरनार ( जुनागढ, गुजरात) तक पूरे भारत  में देखे  जा सकते है।
बौद्ध इतिहास  दीपवंश और  महावंश  के अनुसार  अशोक ने धम्म प्रचार  के लिए  जिन -जिन विद्वान  बौद्ध भिक्षुओ को भिन्न-भिन्न  देशो में  भेजा था, इन दोनों ग्रंथों में  इस प्रकार  लिखा गया है-
1) मज्झन्तिक स्थविर- कश्मीर तथा  गन्धार
2) महारक्षित स्थविर- यवन देश
3) मज्झिम स्थविर- हिमालय क्षेत्र
4) धर्मरक्षित स्थविर- अपरान्तक (गुजरात)
5) महाधर्मरक्षित स्थविर- महाराष्ट्र
6) महादेव स्थविर- महिमामंडन (मैसूर)
7) रक्षित स्थविर- वनवाती ( उत्तर कन्नड)
8) सोण और उत्तर स्थविर- स्वर्णभूमि
9) महिंदर तथा संघमित्रा- सिरीलंका
इन धम्म  प्रचारक  भिक्षुओं के  अतिरिक्त  सम्राट अशोक ने  धम्म दूत  भी  विदेशो में भेजे थे। अपने शिलालेखो में  उसने उनके नाम स्पष्ट  रूप से गिनाए है।  इनमें दक्षिणी सीमा पर स्थित  चोल, पांड्य, सतियपुत्त, केरलपुत्त  एवं  ताम्रपर्णी ( श्रीलंका) का नाम  विशेषरूप से  हमारे सामने आया है। इतना ही नही इन पांच  यवन  राजाओं  का नाम भी  एक शिलालेख में  आया है, जहां  धम्म प्रचारार्थ धम्मदूत  भेजे गए  थे, वे इस प्रकार  है-
1) अन्तियोक  ( सीरियाई  राजा)
2) तुरमय  ( मिस्री राजा)
3) अन्तिकिनि ( मेसोडोनियन राजा)
4) मग ( एपिस)
5) अलिक सुन्दर  ( सिरीन)
अशोक के इस सघन प्रचार  से विदेशों में तथागत बुद्ध की  कल्याणकारी शिक्षाओ का खूब विस्तार हुआ। सम्राट अशोक ने तथागत गौतम बुद्ध के 84000 उपदेशो को चिरस्थाई करने के लिए  84000 स्तूपो का निर्माण करवाया।  आज बुद्ध धम्म फिर गुंजायमान हो रहा है उसके पीछे सम्राट अशोक का योगदान है। आदर्श राजा कैसा होना चाहिए  उसकी मिशाल  अशोक  के एक लेख से मालूम होता है।
राजाज्ञा:
" चाहे मैं खाता होऊं  या अनत:पुर ( महल ) में रहूं  या  शयनगार में रहूं  या उद्यान में। टहलता होऊं या सवारी पर या कूच कर रहा हूं, सब जगह, सब  समय फरियादी प्रजा  का हाल मूझे  सुनावें।"
सम्राट अशोक के धम्म प्रचार अभियान  ने राजा और  नागरिक  दोनों के बीच आपसी मेल-मिलाप के लिए  आदर्श  प्रस्थापित किया है।
अशोक के अनुसार धम्म सर्वमंगलकारी है, जिसका मूल उद्देश्य प्राणी का मानसिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक उत्थान करता था। क्योंकि, बुद्ध धम्म अत्यन्त सरल तथा व्यावहारिक था। प्राणि मात्र पर दया करना, सत्य बोलना, सबके कल्याण की कामना रखना, माता-पिता, गुरुजनों का आदर-सम्मान करना अशोक के धम्म  प्रचार के प्रधान लक्षण थे।
12 वें शिलालेख में वह विभिन्न धर्मों के प्रति अपने दृष्टिकोण को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहता है – मनुष्य को अपने धर्म का आदर और दूसरे धर्म की अकारण निंदा नहीं करनी चाहिये। ... एक न एक कारण से अन्य धर्मों का आदर करना चाहिये।अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध भिक्षु और  भिक्षुणी बनाकर अशोक सही अर्थ  में धम्म दायाद हुआ ।
महास्थविर मोगलिपुत्त तिस्स की अध्यक्षता में 1000 विद्वान विनयधर भिक्षुओ द्वारा तीसरी धम्म संगीति पाटलीपुत्र हुई थी। कथावस्तु प्रकरण नामक ग्रंथ की रचना की गई और  स्थविरवाद( थेरवाद ) को मान्यता प्राप्त हुई। अशोक की दान पारमीता भी  सर्वोत्तम थी।  "आमलक चैत्य" उसकी उत्तम  मिशाल है। सम्राट अशोक  कई दृष्टियों में अद्भुत, प्रतिभाशाली और  संसार  के इतिहास  में महान तथा असाधारण पुरूषों में से एक थे।  इस महान सम्राट की जयंती पर गर्व करते हुए सभी धम्म अनुयाईओं को हार्दिक बधाई।

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