‘हम इतने बेजान हो गये, पत्थर के उपमान हो गये, मंदिर की छत पाने वाले सब पत्थर भगवान हो गये
बस्ती । अदबी संगम की ओर से प्रेस क्लब में काव्य गोष्ठी और शेरी नशिस्त का आयोजन उस्ताद शायर ताजीर वस्तवी की अध्यक्षता में किया गया। संचालन शायर डा. अफजल हुसेन अफजल ने किया। सागर गोरखपुरी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना और मौलाना अनवार पारसा के नातिया कलाम से शुरू हुई काव्य गोष्ठी में रचनाकारों ने वर्तमान हालात से लेकर जीवन के विभिन्न विन्दुओं पर अपनी कविता, शेरो शायरी प्रस्तुत किया। हरीश दरवेश की रचना ‘ हम इतने बेजान हो गये, पत्थर के उपमान हो गये, मंदिर की छत पाने वाले सब पत्थर भगवान हो गये, सुनाकर सोचने पर विवश किया। गीतकार विनोद उपाध्याय ‘हर्षित ’ने कुछ यूं कहा- प्यार की ये किताब ले जाना, जख्मे दिल का हिसाब ले जाना’ के द्वारा प्रेम, विछोह को स्वर दिया।
अध्यक्षता कर रहे उस्ताद शायर ताजीर वस्तवी के कलाम ‘आप को देखकर सब लोग मचल जाते हैं, और इक आप हैं, धीरे से निकल जाते हैं, देखकर आपके चेहरे की गुलाबी रंगत, मोहतरम लोगों के भी पांव फिसल जाते हैं, ने गोष्ठी को ऊंचाई दी। डा. अफजल हुसेन ने कुछ यूं कहा -‘ इन निगाहों को चार मत करना, जिन्दगी बेकरार मत करना, प्यार लेना तो प्यार दे देना, प्यार में तुम उधार मत करना’ सुनाकर वाहवाही लूटी। अनवार पारसा के शेर ‘ जिस्म पर कोई दाग नहीं, और तीर जिगर के पार गया, मेरे कातिल, मेरे मसीहा तू जीता मैं हार गया’ के द्वारा श्रोताओं को सोचने पर मजबूर किया। रामचन्द्र राजा की कविता ‘ जुल्फ की जंजीर को कांधे पे वो बिखरा दिये, बस में नहीं जज्बात है, ये किसने आंसू गिरा दिये’ सुनाया। असद बस्तवी ने यूं सुनाया‘ चारो तरफ है शहर का मंजर धुंआ, धुंआ, शोलों की जद से दूर तेरा आशियां रहे। सागर गोरखपुरी ने की रचना ‘ अपने इल्जाम को रखेगा वो सर पर मेरे, गल्तियां करके वो बेदाग गुजर जायेगा, सुनाकर सवाल खड़े किये। राजेन्द्र राही की रचना ‘ सफर में तुम्ही हम सफर हो हमारे, मैं चलता रहा रात दिन ले सहारे’ सुनाया। इसी कड़ी में शिवशंकर साहू, प्रदीप श्रीवास्तव, दीपक सिंह के साथ ही अनेक कवियों, शायरों ने रचनाओं के माध्यम से मंत्र मुग्ध किया।
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