बस्ती । पूर्वान्चल विद्वत परिषद की ओर से गुरूवार को प्रेस क्लब में वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्रनाथ तिवारी की अध्यक्षता में होली मिलन समारोह एवं विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. संजय द्विवेदी ने कहा कि होली सदियों से वैर भाव मिटाकर हमें एकजुटता का संदेश देती रही है। इसका सम्बन्ध आध्यात्म के साथ ही प्रकृति के रूप स्वरूप बदलने से है।
अध्यक्षता करते हुये राजेन्द्रनाथ तिवारी ने कहा कि प्रकृति पुरूष ही वह ध्येय है जो सृष्टि के रंगमंच पर हमें विविध रूपों से परिचित कराते हैं। होली कटुता, भेदभाव को भुलाकर हमें एकजुट करती है। संचालन करते हुये वरिष्ठ कवि डा. रामकृष्ण लाल जगमग ने कुछ यूं कहा‘ कल तक तो मैं प्राणनाथ था, लेकिन अब हो गया अनाथ, होली के दिन गई मायके श्रीमती साले के साथ’ पर श्रोताओं ने ठहाके लगाये। वरिष्ठ रचनाकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला की रचना ‘ कैसे जिये जिन्दगी इन्सान समझ नहीं पाता हूं, रहता हर वक्त परेशान समझ नहीं पाता हूं’ को सराहा गया। विनोद उपाध्याय के सरस्वती वंदना और उनके गीत ‘नयन से नयन का मिलन हो रहा है’ नये प्यार का ये सृजन हो रहा है’ ने मंच को ऊंचाई दी। डा. वी.के. वर्मा ने होली के महत्व पर प्रकाश डाला, उनकी रचना ‘ सच्चे अर्थो मंे होली है समरसता का ही त्यौहार, लाज छोड़कर गले लगा दो, आज करो तुम मत इन्कार, आया होली का त्यौहार, सुनाकर वातावरण को सरस बना दिया। साहित्यकार डा. त्रिभुवन प्रसाद मिश्र ने कहा कि होली का रिश्ता खेत खलिहान से जुडा है, गेहूं, सरसो, चना, मटर तैयार तो समझो होली आ गई। मशहूर शायर ताजीर वस्तवी के शेर‘ जरा सी बात पर तुमने रूला दिया उसको, अब उसकी आंख में काजल तलाश करता है’ के द्वारा मानव मन के परिवर्तन को रेखांकित किया। विवेक कौटिल्य ने कर्ण खण्ड काव्य पर आधारित रचना सुनाई। इसी क्रम में रामचन्द्र राजा, सागर गोरखपुरी, राजेन्द्र सिंह राही, रामदत्त जोशी, अवधेश मणि आदि की रचनायें सराही गई। कार्यक्रम में गजेन्द्र मिश्र, राजन मिश्र, अमरेश चन्द्रा, सामईन फारूकी के साथ ही अनेक सुधी साहित्यकार, कवि उपस्थित रहे।
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