जोड़नी पड़ेगी हमे अपनी पुरानी कड़ियां
जब तक एकता की आती रहेंगी कहानियां
गहने और साड़ी में उलझी रहेंगी लड़कियां
कपड़ो की तरह जहां रोज़ रिश्ते हैं बदलते
बताओ क्या सीखेंगे हमारे बच्चे - बच्चियां
फटे कपड़ो की नुमाइश है सुघड़ बदन पे
बच्चो के मन मे विकृति लाती हैं नादानियां।
परांठे कहां बनते हैं अब किस किचन में?
दो मिनट की मैगी में उलझी हैं जिंदगियां
ध्रुव ,प्रह्लाद,औ कृष्ण से दूर हो गए हैं बच्चे
डोरेमॉन सिनचैन इन्हें याद हैं ज़ुबानियाँ
सल्लू, संजू हैं सभी बच्चों के आदर्श
जो जेल से आये हैं तोड़ के रोटियां
तोड़नी है अगर हमे ये बंधी बेड़ियां
जोड़नी पड़ेगी हमे अपनी पुरानी कड़ियां ।
@ मयंक श्रीवास्तव
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साहित्य