ये वर्ष ले रहा है विदा, अतीत में बस जाने को.....

ये वर्ष ले रहा है विदा

अतीत में बस जाने को

सदियां बाट जोहतीं हैं

कोई प्रिय है आने को।

 

कही खिले हैं सुख के धूप 

बरसी कहीं दुख की बदली

सुख दुःख है हर आँगन में

राहों से मिलती हर गली।

 

डालों से गिरते हुए  पात

कहता हर नव अंकुर से

आएंगे हर तरह के मौसम

साथ न छोड़ना तरुवर के।

 

उड़ जाऊंगा मैं यहां से

मिल जाऊंगा खेतों में

बन जाऊंगा फिर खाद

ऊर्जा भर दूंगा बीजो में।

 

आएंगे इनमे नव किसलय

फूलो से महकेगा वसन्त

चलता रहेगा ये जीवन

इसका नही है कोई अंत

 

अतीत वर्तमान भविष्य 

जीवन की हैं कड़िया

इक आगत है जुड़ने को

जाती अतीत की लड़ियां।

 



@मयंक श्रीवास्तव 


और नया पुराने