आने को है बीसवाँ साल
तरुणाई है इस सदी की
चल रहा उन्नीसवाँ साल
कुछ दिन और शेष बचे
आने को है बीसवाँ साल।
सुख दुख रहे हैं जीवन मे
रहे हैं आँगन में धूप छांव
बरसी हैं बदलियां खेतो में
कुछ प्यासे भी रहे हैं गांव।
उस पार भी जाके पहुँचे हैं
भवँर में जूझते हुए नाव
कुछ तो साहिल पे डूबे हैं
मुड़ चुके थे उनके पांव।
अब भी कौवा आता उड़के
उस मकान के नीम की छांव
जाने किस वर्ष बच्चे आये थे
बुजुर्गों के लडखडाते पांव ।
जीवन नही है ऐसा भी सस्ता
जो बने हार जीत का दांव
फूंका इक नारी काया को
कालिख़ लगा सर से पांव
जिम्मेदार बहुत होता है
जीवन का बीसवाँ साल
उन्नीसवाँ तुन्हें बता रहा
पूछे जाएंगे जो सवाल।।
-मयंक श्रीवास्तव
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साहित्य